मंगलवार, जून 15, 2010

''अभी मझे जरूरत थी तेरी''

पालने से उतर कर बस आंखें खोली ही थी मैने
गिर न जाऊं ठोकरों से इसीलिए तो हाथ थामा था तुमने

...हर तरफ नकली चेहरों की भीड़ थी , तुझे नजरें ढूंढतीं थीं मेरी
'मां' अकेला छोड़कर चली गई , अभी मुझे जरूरत थी तेरी

दो आंसू बस गिरते थे मेरे , आंचल तेरा भीग जाता था
नींद मुझे न आती थी तो तेरा चैन खो जाता था

तेरे चेहरे से दिन , गोद में तेरे रात होती थी मेरी
नींद आती नहीं अब मुझे मां अभी जरूरत थी मुझे तेरी

जी भरके चाहती थी तुझे देखना मैं अभी
पास तेरे इतना आऊं कि दूर कर न पाए कोई कभी

गुनाह कौन सा किया था पूछती है बिटिया तेरी
रूठकर तू मुझसे चली गई, अभी जरूरत थी मुझे तेरी

ईद और दिवाली सब मेरे लिए फीकी रहीं हैं
खुशियों के दिन भी आंखे मेरी नम रहीं हैं

खुश नहीं रह पाती हंसी बनावट रह गई है मेरी
दामन खाली है मेरा 'मां'अभी जरूरत थी मुझे तेरी

दीदी, मासी, चाची सभी काम सिखा रहे हैं मुझे
कब तक रहेगी यहां , जाना है घर दूसरे तुझे

कौन समझाए इनको मैं अभी बच्ची हूं तेरी
इनकी बातों से डर लगता है , 'मां' अभी जरूरत थी मुझे तेरी .

(यह कविता मैने अपनी 'मां' के जाने के बाद लिखि थी, कविता मैने अपनी बड़ी बहन को समर्पित किया है......सर्वेश )

रविवार, जून 13, 2010

homework.....papa ka , mummy ka , didi ka, bhaiya ka , miraz ka aur home work mera..

आज किसी काम से नेहरू प्लेस गया हुआ था। क्राइम पेट्रोल का एक कार्य था। कलर प्रिंट निकलवाना था किसी डॉक्यूमेंट का, अपना काम कराने के लिए मिराज नामक एक फोटोशॉप ऐक्स्पर्ट के पास बैठा दिया गया। बस दो मिनट कहते कहते मिराज ने 45 मिनट ले लिए थे मुझसे लेकिन मुझे बुरा नहीं लग रहा था। फोटोग्राफी का शौक है और फोटोशॉप पर मिराज के किए जा रहे काम को देख रहा था तो सभी ख़ता माफ थी मिराज भाई की। मिराज एक प्रोजेक्ट बना रहा था। 70 साल के एक आदमी का , प्रोजेक्ट में एक फैमिली ट्री बनानी थी। फोटोशॉप के प्रयोग के बिना वो काम नहीं किया जा सकता था। मिराज और दादा जी लगे हुए थे। इस बीच दादा जी ने मिराज को दो चार डांट भी पिलाई कि वह सही से काम नहीं कर रहा है। मिराज मेरे काम को करने के लिए उनके काम को जल्दी जल्दी खत्म कर रहा था। इस कारण मैं भी दादा जी की डांट का परोक्ष रूप से केंद्र था। लो ये क्या ! आपका काम खत्म हो गया तो आप पैसे देने से आना कानी कर रहे हैं। ये कोई बात नहीं होती है। आपने दस मिनट कहकर मेरे से एक घंटे का काम ले लिया है। मालिक (दुकान का मालिक) दादा जी से एक घंटे के एडिटिंग के पैसे काट लियो। दादा जी अब भी मिराज के पास ही खड़े हैं। मिराज गुस्से में है। मैने प्रोजेक्ट पर गौर से नजर डाली तो पाया कि किसी बच्चे का प्रेजेक्ट वर्क था। दादा जी ने मेरे पूछने से पहले ही कबूल कर लिया कि उनके पोते का प्रोजेक्ट वर्क है जो उनके बेटे ने उनको करने के सौंप दिया है। खाली जो बैठे रहते हैं दिन भर । दादजी ने बताया कि पोते का होमवर्क है जो उसको स्कूल टीचर ने करने को दिया है। फैमिली फोटोग्राफ्स की सहायता से फैमिली ट्री बनाने का और जिसका बेस्ट प्रोजेक्ट होगा उसे प्राइज़ मिलेगा। लो भला अब कौन बाप नहीं चाहेगा कि उसका लाल क्लास में अव्वल आए फिर भले ही वह फोटोग्राफी प्रोजेक्ट ही क्यों न हो। इस प्रोजेक्ट के साथ ही एक प्रोजेक्ट और भी था दादा जी के हाथ में । पोलॉव कैसे बनाएं ? यह काम भी दादा जी के पोते को एस ए होमवर्क ही मिला था। वो प्रोजेक्ट मेरे आने से पहले मिराज ने बना दिया था। उसमें पोते को घर में पोलॉव कैसे बनाए का काम दिया गया था। दादा जी परेशान थे कि मिराज ने उनके एकार्डिंग काम नहीं किया है सो लड़ने पर उतारू हो चुके थे। तू तू मैं मैं पर बात आ चुकी थी। मालिक बीच में आ चुका था। दादा जी शाय़द इसलिए डर रहे होंगे कि काम अप टू दि मार्क नहीं हुआ तो उनका बेटा उनपर भड़केगा और बेटा इसलिए भड़केगा क्योंकि दादाजी का पोता अपने बाप पर भड़केगा। ........................
मैंने इसी बीच प्रोजेक्ट फाइल पर नजर दौड़ाई तो क्लास देखकर चौंक गया ....ये क्या क्लास फोर्थ का स्टूडेंट। हे भगवान ! क्या स्कूल ये मानता है कि क्लास फोर्थ का स्टूडेंट फोटोशॉप की सहायता से अपना प्रोजेक्ट बना लेगा। क्या स्कूल समझता है कि क्लास फोर्थ का बच्चा अपने रसोई खाने में पोलाव बना लेगा। अगर समझता है तो बहुत अच्छी सोच है ऐसे स्कूलों की और उनके टीचर्स की। लेकिन क्या वास्तव में उस बच्चे ने ये होमवर्क किए ...शायद नहीं । होमवर्क तो पूरे घर ने मिलकर किया ।  क्लास में अव्वल आना था। पापा का सपना.... और दादा का एफर्ट। स्कूल ने चार साल के बच्चे को पोलाव बनाने का होमवर्क दिया था, कैसे बनाएगा और कौन बनाएगा यह सोचना उनका काम नहीं था। फोटोग्रॉफ्स को अरेंज कर फैमिली ट्री बनाने का काम बच्चा कैसे कर सकता है यह भी स्कूल नहीं सोचता। मैं इस बात से हैरान था कि आखिर आज का मॉडर्न स्कूल बच्चों से चाहता क्या है। क्या होमवर्क के लिए कुछ भी नहीं रह गया है। और अगर है भी तो क्या उम्र का कोई फर्क नहीं पड़ता अब। मैं शिशु मंदिर में रहकर पढ़ा हूं गृहकार्य में घर से गमला रंगने को लाने के लिए कहा जाता था। कृष्ण भगवान की पांच कहानियां लिखकर लाने को कहा जाता था। घर के पुराने कपड़ों से मिलाकर कोई कलाकृति बनाकर लाने को कहा जाता था। सही मायने में तो हमें यह कार्य करने में कोई भी असमर्थता नजर नहीं आती थी। और यदि कभी भूले से भी अपने गृहकार्य को माता पिता से करने को कह दिया तो एक टाइम का खाना बंद कर दिया जाता था जब तक कि पूरा होमवर्क खत्म न हो जाए। कैसी शिक्षा मिल रही है और किस दिशा में ये ले जाएगी यह तो वक्त ही तय करेगा। सिबाका टूथब्रश के एक एड की जिंगल लाइन याद आ गई थी....सिबाका मम्मी का , पापा का , भइया का और सिबाका मेरा.....