टशन, एक विज्ञापन से इस शब्द का फैलाव हमारे समाज कुछ इस तरह से हुआ कि युवा पीढ़ी इसकी जद में आ गई। इग्जैक्ट मीनिंग तो मैं नहीं बता सकता लेकिन इसे कुछ लोग( युवा ) भोकाल कहते हैं तो कुछ लोग ऐटिट्यूड। जी हां टशन का होना अच्छी बात है और जब किसी बात में टशन हो तो फिर क्या बात है। ब्लॉग में बेलाग टिप्पणी कर अपनी टीस या सभ्य शब्दों में कहें तो भावों को निकालने में इस टशन का यूज ही 'टीस का टशन' को जन्म देती है। ये क्यों कहें कि दिन आजकल अपने खराब हैं कांटों में घिरे हैं समझलो गुलाब हैं...
रविवार, अप्रैल 11, 2010
टशन....
ब्लॉग का पहला संदेश मुझे ही लिखना था सो टशन से शुरुआत करुंगा। हिंदी लेखन में कमी हो सकती है सो आलोचकों से करबद्ध क्षमा। हां तो बात हो रही है टशन की। मेरे मित्र के घर पर एक नौकर काम करता है। बता दूं कि उसकी प्रेजेंस से उसे नौकर समझपाना मुशिकल था मेरे लिए। उसके कपड़े, उसकी बातें और उसके मल्टीमीडिया मोबाइल हैंडसेट से उसका टशन झलकता है। बात सीधी सी है सवा सौ करोड़ की भीड़ में अपने को अलग दिखाना है तो टशन में रहना होगा। लाखों ब्लॉग में अपनी बात बतानी है तो टशन में लिखना होगा। रोहित बल फैशन की दुनिया में तो अब्बास मस्तान डायरेक्शन की दुनिया में, श्रीवर्धन की सनसनी, रवीश जी की स्क्रिप्ट तो कमाल खान की स्टोरी, लेखन में खुशवंत सिंह का टशन तो नेताओं में लालू का टशन। दिख भी रहा है और बिक भी रहा है। भाई सबका अपना अपना टशन है। इस बाजारू दुनिया में अपने को बेचना है तो टशन का होना बहुत जरूरी है वरना खरीददार आपको भाव नहीं देगा। हर किसी की अपनी एक टीस होती है, होनी भी चाहिए क्योंकि हम पैदा होते ही कंप्रोमाइज से हाथ मिला लेते हैं। नौकरी में प्रमोशन का मिलते मिलते रह जाना, सैलेरी का न बढ़ना, कुत्ते की तरह काम करते चले जाना और किसी का एप्रिशिएशन न मिलना, .... आदि आदि. और जब समझौते से दोस्ती कर ही लिए हैं तो टीस का निकलना स्वाभाविक है। मनमाफिक का ना होना या न कर पाना टीस का प्लेटफार्म तैयार करता है। ढेर सारे लोग ढेर सारी टीस लेकिन उसकी टीस में दम होगा जिसकी टीस में टशन होगा।
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