रविवार, नवंबर 09, 2014

कुछ प्रूव करने की जरूरत आखिर क्यों ?


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अभी STAR PLUS चैनल पर एक सीरियल आ रहा है जिसका नाम है एवरेस्ट ( EVEREST) । इसकी कहानी का सारांश ये है कि लड़की अपने पिता की नजर में सम्मान पाने के लिए एवरेस्ट की चढ़ाई चढ़ती है और कामयाब हो जाती है । बहुत ही अच्छी और रोचक कहानी है निसंदेह लेकिन क्या वाकई ये एक प्रेरणदायी कहानी हो सकती है ? इसका जवाब बहुत ही सीधा है ..नहीं ..ये कहानी समाज में सिर्फ एक नकारात्मक उदाहरण रखने के सिवाय कुछ नहीं कर रही है । ऐसी ही तमाम कहानियों से पटा पड़ा है हमारा चलचित्र संसार जहां पर लड़की कुछ न कुछ प्रूव ही कर रही है और फिर उसके बाद उसे सम्मान का भागीदार बनाया जाता है ।
मेरे विचार से ये एक प्रकार की शर्त लादी जा रही है महिलाओं पर या फिमेल जेनेरशन पर कि आपको अगर समाज में , परिवार में या फिर खुद की नजर में सम्मान की दरकार है तो आप पहले ये तय टारगेट को पूरा करो । क्यों करे लड़की किसी टारगेट को पूरा और क्यों उसके बाद ही उसे सम्मान और इज्जत दी जाए ? इस हिसाब से मिली इज्जत और सम्मान को मैं गलत मानता हूं । ये गलत उदाहरण समाज के सामने रखा जा रहा है जहां पर लोगों के मन में बेटी के प्रति एक आस और एक उम्मीद का नकारात्मक बीज बोया जा रहा है । क्या समाज में बेटों को भी इसी तरह के टारगेट सेट करके उसपर विजय प्राप्त करने के बाद सम्मान मिलता है ? नहीं । उनके लिए समाज जन्म से ही सम्मान और इज्जत देने के लिए तैयार खड़ा है । उनके लिए किसी बाप ने एवरेस्ट की ऊंचाई पर चढ़ने का और उसपर फतेह पाने का टारगेट सेट नहीं कर रखा है । बेटे का जन्म ही उसके सम्मान और इज्जत की गारंटी हो जाता है । लेकिन बेटी हुई तो चलो पहले अपने आपको प्रूव करो कि तुम एक लड़के बराबर वो सभी काम कर सकती हो जो लड़का कर सकने में समर्थ है । बेटी बेटों से कम नहीं होती । इस स्लोगन में ही नकारात्मकता है । बेटी बेटों से कम नहीं होती से क्या मतलब है कि बेटों को पहले ही उस स्थान पर बैठा दिया है और अब तुलना कर रहे हैं कि बेटी भी वहां पहुंच सकती है । गलत है ऐसी धारणा और गलत हैं ऐसे स्लोगन । बेटी बेटी होती है और बेटा बेटा होता बात खत्म । जो काम बेटी कर सकती है हमें उन्हें सम्मानित नजर से देखना होगा । समाज में इस तर्क को खत्म करना होगा कि अगर बेटी घर का काम करती है तो वह महिलाओं के लिए ही बना हुआ है । नहीं ऐसा कतई नहीं है । हमें हर उस काम को महत्व देना होगा जो बेटियां कर रहीं हैं या करती आई हैं । बंद करना होगा ये कहना कि पायलट तो बेटियां भी बनतीं हैं । जी नहीं पायलट बेटा और बेटी दोनो ही बन सकते हैं । बंद करना होगा ये कहना कि अब तो ये काम बेटियां भी करती हैं ...जी नहीं ये काम बेटे और बेटियां दोनो ही करते हैं ।
अगर मैं एवरेस्ट नामक सीरियल के निर्माता को एक छोटा सा उदाहरण देकर अपनी बात देश की सभी बेटियों तक पहुंचाऊ तो ज्यादा सटीक होगा । कैसे ...बबीता - गीता - विनेश , ये तीनों बहनें रेस्ट्लर हैं और 2010 व 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में तीनों ने स्वर्ण पदक हासिल किया था । आइए इनके बारे में और इनके परिवार के बारे में जानते हैं । पिता महावीर सिंह फोगत की तीनों बेटियां अंतर्राष्ट्रीय स्तर की रेस्ट्लर हैं और तीनों ही स्वर्ण पदक विजेता रहीं हैं । कई साल पहले इनके पिता महावीर जी ने जब अपनी बेटियों को गांव के अखाड़ों में कुश्ती के दांव पेंच सिखाने के लिए उतारा था तो पूरे गांव के लोगों ने महावीर जी को काफी समझाया और उनका विरोध भी किया कि बेटियों को कुश्ती कराने के लिए नहीं घर में चूल्हा चौका कराने के लिए बड़ा किया जाता है लेकिन महावीर जी को शायद बेटियों पर जन्म से ही भरोसा था ...हमारे समाज को भी महावीर जैसी ही सोच लानी होगी जहां पर बेटियों के द्वारा कुछ प्रूव करने से पहले ही हमें बेटियों को वो सम्मान और वो इज्जत का दर्जा देना होगा । न कि किसी प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मेडल लाने के बाद हम बेटियों को सम्मान दें ये तो बनियागीरी हो गई । महावीर जी को अपनी बेटियों को कुश्ती सिखानी थी न कि उनसे किसी तरह का गोल्ड मेडल लाने का उनका ख्वाब था । जब पिता ने इतना भरोसा किया तो बेटियों ने भी पिता की शान को और बढ़ा दिया मेडल लाकर ....लेकिन अगर वो मेडल ना लातीं तो क्या महावीर जी का व्यवहार बदल जाता । जी नहीं क्योंकि महावीर जी की सोच कुछ प्रूव करने के बाद नहीं बल्कि जन्म से ही ऐसी थी ।
यदि प्रूव करने के बाद के विचार में आए बदलावों पर नजर दौड़ाएं तो बेटियों को सम्मान मिलने के बाद भी सोच में बदलाव तो आएगा ही नहीं और फिर हालत पुणे की इंदिरा गायकवाड़ जैसी हो जाएगी जिसे भारत सरकार ने उनकी उपलब्धि को देखते हुए सरकारी जॉब की तो घोषणा कर दी लेकिन बाद में उन्हें अपने मेडल तक बेचने की नौबत देखनी पड़ रही है (http://www.thehindu.com/…/maharashtras-t…/article6386465.ece) ।
मेरा मानना है कि बेटियों के सामने किसी तरह की कोई शर्त ही नहीं रखनी चाहिए और उन्हें सम्मान व इज्जत जन्म के समय से ही मिलना चाहिए और ये तभी संभव होगा जब ये हमारे अंदर से आए । हमारे सामने फिल्म रखी जाती है मैरीकॉम की और उदाहरण दिया जाता है कि मैरीकॉम की तरह कुछ प्रूव करो तो आपके पिता भी आपको सम्मान देंगे ...नहीं ये गलत संदेश है ...जरूरत है ऐेसे उदाहरणों की जिनमें बबिता - गीता के पिता को आदर्श स्वरूप दिखाया जाए और लोगों की बेटियों से बंधती उम्मीदें खत्म होकर उनके प्रति सम्मान पैदा हो सके । वास्तव में हमारे देश में बेटियों को इसी सम्मान की जरूरत है और यदि उनको जन्म से ही ऐसा आदर व सम्मान मिलना शुरू हो गया तो यकीन मानिए कि पूरा दृष्य अपने आप ही सुंदर और प्यारा हो जाएगा ।
.......................जय हिंद ।

Anxiety grips Indira Gaikwad as she hobbles on her crutches in her matchbox-sized home tucked away amid the rundown tenements in the city’s...
thehindu.com|By Shoumojit Banerjee

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